बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- शैशवावस्था में सामाजिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर -
फ्रायड के अनुसार - “स्तनपान तथा उससे सम्बन्धित मौखिक उद्दीपन अपनी आन्तरिक प्रकृति में ही आनन्दमयी होता है, माता के प्रति शिशु की आसक्ति का श्रेय भी इसी को प्राप्त होती है।" वी० कुप्पुस्वामी के अनुसार, “शिशुओं की सामाजिक अनुक्रियात्मकता का विकास दुग्धपान की स्थिति से ही होने लगता है।"
क्रो तथा क्रो ने कहा है कि - "जन्म के समय शिशु न तो सामाजिक प्राणी होता है और न असामाजिक । परन्तु ऐसी स्थिति में वह अधिक समय तक नहीं रहता। जैसे-जैसे शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास होता जाता है और उसका सम्पर्क अन्य लोगों के साथ होने लगता है, वैसे-वैसे उसका सामाजिक विकास होता जाता है। "
शुरू के तीन वर्षों के आत्म- केन्द्रित व्यवहार से हटकर स्कूल- पूर्व अवस्था में क्रमशः बालक के व्यवहार का समाजीकरण होने लगता है। शैशवावस्था में वह एकदम आत्म- केन्द्रित और स्वार्थी होता है और दूसरों को कुछ नहीं देना चाहता है । सामाजिक विकास के साथ-साथ वह मिल-बाँटकर खाता है और दूसरों के साथ सहयोग करता है। फिर भी बुद्धिमान बालक में कुछ न कुछ स्वतन्त्रता और वैयक्तिकता बराबर बनी रहती है। स्कूल पूर्व आयु में बालको के अधिकतर खेल आत्म-केन्द्रित (Egocentric) होते हैं। स्कूल में जाने पर बालक का समाजीकरण होता है। शीघ्र ही लड़के, लड़कों के और लड़कियाँ, लड़कियों के समूह की सदस्य बन जाती हैं। स्कूल में बालक पर दूसरों के, विशेषतया बड़ों के उसके प्रति व्यवहार का बड़ा प्रभाव पड़ता है। 4-5 वर्ष की आयु तक बालक-बालिकायें साथ-साथ खेलते हैं। जैसे-जैसे बालक को अन्य बालकों से मिलने का अवसर मिलता है वैसे-वैसे शीघ्रता से उसका समाजीकरण होता है। मर्फी के अनुसार, "वह बालकों की एक छोटी दुनिया का सदस्य बन जाता है जो सब उसकी बराबर आयु के हैं, यद्यपि विभिन्न समूहों में व्यवस्था के अनुसार आयु में अन्तर हो सकते हैं। बालकों की वह दुनिया इस समय उसके सामाजिक भोजन का अधिकांश भाग है, वह इसको दूसरे बालकों के प्रतिमानों का अनुकरण करके, उनकी क्रियाओं और उनके द्वारा उत्पन्न परिस्थितियों के प्रति स्वाभाविक प्रतिक्रियायें करके, इस दबाव का विरोध करके और उनकी उपस्थिति मात्र से उत्पन्न हुए तनावों के बार-बार अनुभव के द्वारा इसको पचाता रहता है।” किन्डर गार्टन और मान्टेसरी स्कूलों में बालकों को अन्य बालकों के साथ खेलने का अवसर मिलने से उनके सामाजिक विकास में सहायता मिलती है। जैसा कि पहले संकेत किया जा चुका है, इस आयु में लिंग भेद पर आधारित समूह भी देखे जा सकते हैं, परन्तु पड़ोसी होने या अन्य किसी कारण से लड़के-लड़की का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध भी देखा जा सकता है। सच तो यह है कि खेलों में लिंग भेद का ज्ञान बालकों में बड़ों की आलोचनायें उत्पन्न करता है। इस आयु में साधारणतया मैत्री दो या तीन तक सीमित रहती है। कुछ बालक अन्य बालकों की अपेक्षा अधिक आसानी से दोस्त बना लेते हैं।
समूह में रहने से बालक में सामूहिक भावना आने लगती है। धीरे-धीरे सही और गलत की चेतना भी आने लगती है, परन्तु अच्छे-बुरे के सम्बन्ध में बालकों में मतान्तर देखा जाता है इस पर अभिभावकों और शिक्षकों की अभिवृत्ति का भी प्रभाव पड़ता है । इस आयु में बालक के व्यवहार में लिंग की चेतना लगभग नहीं दिखलाई पड़ती। वास्तव में यह चेतना विशेष रूप से किशोरावस्था पूर्व बचपन में आरम्भ होती है।
हरलॉक (Hurlock) ने - इस विकास क्रम का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया है-
1. पहले महीने में शिशु साधारण आवाजों और मनुष्यों की आवाज में अन्तर नहीं जानता है।
2. दूसरे महीने में वह मनुष्य की आवाज पहचानने लगता है। वह दूसरे व्यक्तियों को अपने पास देखकर मुस्कराता है।
3. तीसरे महीने में वह अपनी माँ को पहचानने लगता है और यदि वह उसके पास से चली जाती है, तो वह रोने लगता है।
4. चौथे महीने में वह आने वाले व्यक्ति को देखता है और जब कोई उसके साथ खेलता है, तब वह हँसता है।
5. पाँचवें महीने में वह क्रोध और प्रेम के व्यवहार में अन्तर समझने लगता है।
6. छठे महीने में वह परिचित व्यक्तियों को पहचानने और अपरिचित व्यक्तियों से डरने लगता है।
7. आठवें महीने में वह बोले जाने वाले शब्दों और हाव-भाव का अनुकरण करने लगता है।
8. तीन वर्ष की आयु तक उसका सामाजिक व्यवहार आत्म-केन्द्रित रहता है, पर यदि इस आयु में वह किसी नर्सरी स्कूल में प्रवेश करता है, तो उसके व्यवहार में परिवर्तन होना आरम्भ हो जाता है और वह नए सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करता है।
9. पाँचवें वर्ष तक शिशु के सामाजिक व्यवहार के सम्बन्ध में हरलॉक (Hurlock) ने लिखा है, “शिशु दूसरे बच्चों के सामूहिक जीवन में अनुकूलन करना, उनसे लेन-देन करना और अपने खेल के साथियों को अपनी वस्तुओं में साझीदार बनाना सीख जाता है। वह जिस समूह का सदस्य होता है, उसके द्वारा स्वीकृत प्रतिमान के अनुसार अपने को बनाने की चेष्टा करता है।"
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- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
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- प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते है ?
- प्रश्न- सामाजिक विकास की अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं ?
- प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये ।
- प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं? समझाइये |
- प्रश्न- संवेगात्मक विकास को समझाइए ।
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- प्रश्न- नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से हैं? विस्तार पूर्वक समझाइये?
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- प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
- प्रश्न- रक्तचाप' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आत्म अवधारणा की विशेषताएँ क्या हैं ?
- प्रश्न- उत्तर प्रौढ़ावस्था के कुशल-क्षेम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जीवन प्रत्याशा से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
- प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए।
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